निरंतर अभ्यास सफलता की कुंजी है

निरंतर अभ्यास सफलता की कुंजी है
प्राचीन काल में बोपदेव नामक एक बालक था वाह पढ़ने में बेहद कमजोर था उसे अपना पाठ भी ठीक से याद नहीं हो पाता था इसीलिए रोज उसे अपने गुरु से डांट खानी पड़ती थी धीरे-धीरे उसे अपनी मूर्ख और मंदबुद्धि होने पर का विश्वास हो गया कोई भी परीक्षा पास नहीं कर पाने के कारण गुरुजी ने उसे विद्यालय से निकाल दिया वह बेहद उदास मन से अपने घर की ओर चल दिया रास्ते में उसे जोरों की प्यास लगी वह पानी पीने नजदीक के कुए पर चला गया वह अब वहां पर अब उसने देखा कि गांव की सीरियल भर रही थी अचानक उसकी नजर कुएं के किनारे जिसे पत्थर पर गई यहां तक यत्र तत्र गड्ढे जैसे बने दिख रहे थे उसने उन स्त्रियों से निशाना के बारे में पूछा तो उन्होंने ने बताया कि रस्सी के बार बार आने जाने से पत्थर घिस गया है
निरंतर अभ्यास सफलता की कुंजी है
 और उस पर निशान पड़ गया है बजे अपने सोचा यदि कोमल रस्सी से कठोर पत्थर पर निशान पड़ सकते हैं तो नित्य निरंतर प्रयास से वह परीक्षा में सफल हो सकता है तथा उसकी आत्मा नष्ट हो सकती है यह सोचकर उसने निश्चय किया और वापस गुरुजी के पास चला गया उसने खूब मन लगाकर पढ़ना शुरू किया वह कठोर परिश्रम करने लगा अंततः वह परीक्षा में सफल हुआ अब उसके गुरुजी भी उस पर पसंद थे निरंतर परिश्रम से आगे चलकर एक बहुत बड़ा विद्वान बन तथा बनाता था जब प्रसिद्ध हुआ

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